राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा की तैयारियां चल
रही हैं। तमाम खास लोगों को बाकायदा निमंत्रण दिया जा रहा है। इस कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बतौर
जजमान शामिल होंगे और मंदिर में मूर्ति की स्थापना करेंगे। राम मंदिर प्राण
प्रतिष्ठा समारोह में शामिल होने के लिए कांग्रेस के तीन नेताओं को निमंत्रण आया।
हालांकि कांग्रेस के इन नेताओं ने इस निमंत्रण को अस्वीकार कर दिया है।
कांग्रेस नेताओं के द्वारा राम मंदिर का निमंत्रण
ससम्मान अस्वीकार किए जाने के बाद उसपर तमाम तरह के सवाल उठ रहे थे। बीजेपी ने
बाकायदा एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कांग्रेस पर निशाना साधा।
हालांकि आज कांग्रेस की ओर से इस संबंध में
प्रतिक्रिया आई है। कांग्रेस ने बीजेपी के आरोपों का एक एक जवाब दिया है।
कांग्रेस पार्टी को नहीं बल्कि नेताओं को आया न्योता
कांग्रेस के मुताबिक राम मंदिर की प्राण
प्रतिष्ठा का न्योता कांग्रेस पार्टी को नहीं बल्कि उसके तीन नेताओं को आया है।
कांग्रेस पार्टी ने साफ किया है कि उसकी ही
पार्टी के उत्तर प्रदेश के नेता 22 जनवरी को अयोध्या जा रहें हैं और उन्हें किसी
ने नहीं रोका है।
कांग्रेस ने बीजेपी के इस मुद्दे पर बोलने पर भी
सवाल उठाए हैं। कांग्रेस ने बीजेपी से पूछा है कि क्या राम मंदिर की प्राण
प्रतिष्ठा कोई राजनीतिक कार्यक्रम है और अगर है तो इसे खुल कर बताने में क्या हर्ज
है।
इस बात में कोई दो राय नहीं है कि कांग्रेस
सैद्धांतिक रूप से मंदिर मस्जिद के विवाद को पार्टी लाइन से ऊपर रखती रही है।
कांग्रेस हमेशा से राम मंदिर और बाबरी मस्जिद
विवाद को जमीन विवाद के तौर पर देखा। यही वजह रही कि उसने इस मामले में जनभावनाओं
से अधिक कोर्ट की ही सुनी।
वहीं बीजेपी ने इसे जनभावनाओं से जोड़ा और
राजनीतिक सीढ़ियां चढ़ती रही। अगर ऐसा नहीं होता तो बीजेपी के नेता भला कांग्रेस
के राम मंदिर में जाने या न जाने को लेकर सवाल क्यों पूछ रहे होते।
वैसे आज हम आपके साथ एक और चर्चा भी करने वाले हैं। कल जब बीजेपी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की तो उसने सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार और उस मौके पर नेहरू की गैरमौजूदगी का प्रसंग भी छेड़ा था। इसे लेकर भी सवाल उठ रहे हैं।
दरअसल बीजेपी ने आरोप लगाया कि जब
सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार हो रहा था तो जवाहर लाल नेहरू को इस कार्यक्रम में
शामिल होने का न्यौता भेजा गया और नेहरू ने ये न्योता ये कहते हुए दरकिनार कर दिया
कि इससे देश में गलत संदेश जाएगा।
बीजेपी के नेता सुधांशु त्रिवेदी ने इस पत्र का
जिक्र किया तो इससे दो बातें निकलती दिखीं। एक तो ये कि नेहरू सोमनाम मंदिर के
जीर्णोद्धार के विरोधी थे और दूसरा ये कि वो वहां न तो खुद जाना चाहते थे और न ही
राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के जाने के पक्षधर थे।
हमने सुधांशु त्रिवेदी के इस बयान के बाद नेहरू
के कुछ और पत्रो को पढ़ा और वो आज हम आप तक लाए हैं। हमें लगता है कि आपको भी इन
पत्रों को देखना और समझना चाहिए।
सोमनाथ मंदिर क्यों नहीं गए नेहरू
दरअसल सोमनाथ का मंदिर जिस वक्त फिर से बनाया जा रहा था उस वक्त देश आजादी के बाद की चुनौतियों से जूझ रहा था। देश अपनी राह तलाश रहा था और नेहरू दिल्ली में व्यस्त थे। इसी दौरान सरदार पटेल ने सोमनाथ मंदिर के जीर्णोद्धार का कार्यक्रम शुरु कर दिया। नेहरू के लिखे पत्रों से पता चलता है कि तत्कालीन गुजरात सरकार ने पांच लाख रुपए की रकम मंदिर के लिए दी। ऐसे में नेहरू ने तत्कालीन सौराष्ट्र सरकार के मुख्यमंत्री यूएन ढेबर को इक्कीस अप्रैल साल उन्नीस सौ इक्कानबे में एक पत्र लिखा। इस पत्र में नेहरू लिखते हैं कि उन्हे पता चला है कि सौराष्ट्र सरकार ने सोमनाथ मंदिर के लिए पांच लाख रुपए सेंक्शन किए हैं। नेहरू आगे लिखते हैं कि –
व्हाटेवर द इंपार्टेंस ऑफ द सोमनाथ टेंपल माइट ही दिस इज नॉट ए गर्वनमेंटर मैटर एंड इट इज प्राइवेट इंडीविजुअल्स टू कलेक्ट मनी फॉर इट।
आई टाउट इफ इट इज अ प्रॉपर यूज ऑफ पब्लिक फंड्स हेल्ड बॉय गर्वमेंट्स टू बी स्पेंट इन दिस वे।
इस पत्र को पढ़ कर आप समझ सकते हैं कि नेहरू न तो सोमनाथ मंदिर के विरोधी थे और न ही उसके जीर्णोद्धार के बल्कि नेहरू उस जीर्णोद्धार में जनता के पैसे को लगाए जाने के नाराज थे।
इस पत्र को लिखे जाने के अगले दिन यानी बाइस
अप्रैल साल उन्नीस सौ इक्यानबे को नेहरू ने एक पत्र तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र
प्रसाद को लिखा। ये एक लंबा पत्र था और इसमें भी नेहरू कई बातों का जिक्र करते
हैं।
इसी पत्र में नेहरू लिखते हैं – एट एनी टाइम दिस वुड हैव बीन अनडिजारेबल बट एड प्रेजेंट जंक्चर वेन स्टारवेशन स्टाक्स द लैंड एंड एवरी काइंड ऑफ नेशनल इकोनॉमी एंड ऑस्ट्रेटी ऑर प्रीच्ड बाई अस दिस एक्पेंडचर बाइ ए गर्वनमेंट अपीअर्स टू मी टू बी ऑलमोस्ट शॉकिंग।
नेहरू के पत्र की ये लाइने आपको बताती हैं कि वो
उस दौरान भारत के हालात को लेकर चिंतित थे और इसीलिए मंदिर के लिए पांच लाख रुपए खर्च करने को सही नहीं मान पा रहे थे।
आपको ये याद रखना चाहिए कि नेहरू जिस साल ये पत्र
लिख रहें हैं वो देश के लिए बेहद अहम वर्षों में से एक था और देश हर दिन एक नई
चुनौती से जूझ रहा था।
नेहरू बार बार 'कैपिसिटी' शब्द का प्रयोग करते हैं
नेहरू के इन पत्रों को पढ़ने के बाद अब कहीं भी
इस फैसले पर नहीं पहुंच सकते हैं कि नेहरू मंदिर जाने के विरोधी थे। बल्कि वो बार
बार जिस शब्द का जिक्र करते हैं वो है कैपेसिटी। यानी वो बतौर प्रधानमंत्री मंदिर
नहीं जाना चाहते थे। इससे ये नहीं कहा जा सकता है कि वो व्यक्तिगत रूप से भी मंदिर
नहीं जाना चाहते थे।
इस सारी चर्चा के अंत में हम आपका ध्यान एक और बात पर दिलाना चाहते हैं और वो ये है कि जब सोमनाथ मंदिर का शिवलिंग की स्थापना हो रही थी उस समय भारत के राष्ट्रपति को न्यौता मिला था। आज जब राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हो रही है तो क्या राष्ट्रपति को न्यौता मिला और क्या वो वहां मौजूद रहेंगी? जिस समय तक हम ये वीडियो रिकॉर्ड कर रहें हैं उस समय तक राम मंदिर के प्राण प्रतिष्ठा में राष्ट्रपति के जाने का कोई कार्यक्रम हमारे संज्ञान में नहीं आया है। अगर आपको इस बारे में जानकारी हो तो हमें कमेंट करके बताइए।
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